हौज़ा न्यूज़ एजेंसी
بسم الله الرحـــمن الرحــــیم बिस्मिल्लाह अल-रहमान अल-रहीम
مِنَ الَّذِينَ هَادُوا يُحَرِّفُونَ الْكَلِمَ عَنْ مَوَاضِعِهِ وَيَقُولُونَ سَمِعْنَا وَعَصَيْنَا وَاسْمَعْ غَيْرَ مُسْمَعٍ وَرَاعِنَا لَيًّا بِأَلْسِنَتِهِمْ وَطَعْنًا فِي الدِّينِ ۚ وَلَوْ أَنَّهُمْ قَالُوا سَمِعْنَا وَأَطَعْنَا وَاسْمَعْ وَانْظُرْنَا لَكَانَ خَيْرًا لَهُمْ وَأَقْوَمَ وَلَٰكِنْ لَعَنَهُمُ اللَّهُ بِكُفْرِهِمْ فَلَا يُؤْمِنُونَ إِلَّا قَلِيلًا. मिनल लज़ीना हादू योहर्रेफ़ूनल कलेमा अन मवाज़ेऐहि व यक़ूलूना समेअनना व असयना वस्मअ ग़ैरे मुस्मइन व राऐना लय्यन बेअलसेनतेहिम वतअनन फ़िद्दीे वलो अन्नहुम क़ालू समेअना व अतअना वस्मअ वनज़ुरना लकाना ख़ैरन लहुम व अक़वमल व लाकिन लअनहोमुल्लाहो बेकुफ़रहिम फ़ला योमेनूा इल्ला कलीला (नेसा 46)
अनुवाद: यहूदियों में ऐसे लोग हैं जो अल्लाह की बातें अपने स्थान से हटा देते हैं और कहते हैं कि हमने सुनी और अवज्ञा की और तुम भी सुनो, परन्तु तुम्हारी बातें सुनी न जाएंगी, यह तो उपहास के कारण है, यद्यपि यदि ये लोग कहते, " हमने सुना और माना, तुम भी सुनो और देखो'' यह उनके लिए बेहतर और उचित होता, लेकिन भगवान ने उनके अविश्वास के कारण उन्हें शाप दिया। यदि हां, तो वे बहुत कम संख्या के अलावा विश्वास नहीं करेंगे।
विषय:
इस आयत में यहूदियों की कुछ मनोवृत्तियों और आसमानी किताबों में उनकी विकृतियों का ज़िक्र किया गया है। अल्लाह ने उनके अवज्ञाकारी और ढीठ व्यवहार की आलोचना की और उन्हें बेहतर व्यवहार करने की चेतावनी दी।
पृष्ठभूमि:
यह आयत मदीना में नाज़िल हुई, जहाँ मुसलमान यहूदियों से घुलमिल गए। कुछ यहूदियों ने इस्लाम के नियमों और पवित्र पैगंबर के शब्दों को बदलने की कोशिश की और निंदात्मक तरीके से बात की। यह आयत उनकी अवज्ञा और पथभ्रष्ट व्यवहार के विरुद्ध चेतावनी के रूप में प्रकट हुई थी।
तफ़सीर:
1. कलाम की तहरीफ: आयत कहती है कि कुछ यहूदी अल्लाह के शब्दों को उनके मूल स्थान से हटा देते हैं, यानी आसमानी पुस्तकों को बदल देते हैं। इसका मतलब यह है कि वे लोगों को धोखा देने के लिए आदेशों को बदलते या तोड़-मरोड़ते हैं।
2. ईशनिंदा शब्द: आयत में यहूदियों के "समीना वा असीना" (हमने सुना और अवज्ञा की) जैसे ईशनिंदा शब्दों का उल्लेख किया गया है। साथ ही वह पैग़म्बर सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम से कहते थे, "राणा", जो सम्मान का शब्द लगता था, लेकिन उनके तरीके और इरादे में अपमान भी शामिल होता था।
3. बेहतर रवैये की हिदायत: अल्लाह ने उनसे कहा कि अगर वे "समीना वा अत्ताना" (हमने सुना और माना) और "अनज़ारना" (हम पर दया करो) जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया होता, तो यह उनके लिए बेहतर और अधिक उपयुक्त होता
4. लानत और कुफ़्र: उनके व्यवहार के कारण अल्लाह ने उन पर लानत की और कहा कि उनमें से बहुत कम लोग ईमान लाएँगे, अर्थात् यहूदियों में ईमान की कमी और अवज्ञा की आदत स्थापित हो गई।
महत्वपूर्ण बिंदु:
• अल्लाह के वचन को गलत तरीके से प्रस्तुत करना एक गंभीर अपराध है जिसकी कड़ी निंदा की जाती है।
• अल्लाह सर्वशक्तिमान ने अभद्र भाषा का प्रयोग करने पर अपनी अप्रसन्नता व्यक्त की है।
• अच्छे व्यवहार और सम्मान की आवश्यकता अल्लाह और रसूल की आज्ञाओं को सुनना और उनका पालन करना है।
परिणाम:
यह आयत यहूदियों के व्यवहार के खिलाफ चेतावनी है और मुसलमानों को यह भी बताती है कि धर्मांतरण, विकृति और निन्दा अल्लाह की नाराजगी और अभिशाप का कारण बन सकती है। ईमान का आधार आज्ञाकारिता और सम्मान है, और अविश्वास और अवज्ञा की प्रवृत्ति व्यक्ति को अल्लाह की दया से दूर कर देती है।
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तफ़सीर सूर ए नेसा